Wednesday 20 June 2012

तुम मिले...


तुम मिले...

जहाँ हमने ढूँढा वहाँ तुम मिले;
जहाँ हम गए वहाँ तुम मिले.

जमीं पे तुम्हारा ही जलवा नजर आया;
अर्श पे तुम्हारा ही अक्स लहराया.

मेरी सोच में तुम्हारा ही आशियाना;
जहाँ भी जाऊं, सुनु तेरा ही अफसाना.

बागों में तुम, उसके कलियों में तुम;
फूलों में तुम, उसके खुशबू में तुम. 

अदाओं में तुम, वफाओं में तुम;
नज्मों में तुम, हर बज्मों में तुम.

शफाकत में तुम, नजाकत में तुम;
जर्रे – जर्रे कि सदाकत में तुम.

आशिकी के हर जमानों में तुम;
आशिक के हर अरमानों में तुम.

मेरे तसब्बुर में तुम, मेरे हर तदवीर में तुम;
दिल- ओ – दिमाग में उपजे सोच कि हर लकीर में तुम.

जहाँ भी जाऊं अब, मुझको मिले तुम ही तुम;
                   अब तो मेरी हस्ती भी है तुम ही तुम... 
               
कुमार ठाकुर
१८ जून २०१२.
© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।

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