Sunday 14 August 2011

स्वतंत्रता - दिवस के सालगिरह पर सभी देशवासियों को बधाई एवं शुभकामनाएं …


सर्व प्रथम आजादी के मतवालों को नमन जिन्होंने अपने वतन के राह पे अपनी क़ुरबानी दी. हमें आजादी दी . एक नयी पहचान दी. एक नया अहसास दिया. एक नया विस्वास दिया. जीने की नई राह दी. आजादी या स्वतंत्रता दिवस हमें हमारी स्वतंत्र अस्मिता का दिग्दर्शन कराती है. आज हम आजादी के ६४ वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं . खुश हैं क्योंकि ख़ुशी का माहौल है. देशभक्तों को याद करने का दिन है. उन्हें श्रधांजलि देने का दिन है. लेकिन, मैं हर स्वतंत्रता दिवस पर सोचता हूँ कि क्या हम सचमुच स्वतंत्र हैं ? जवाब है - नहीं. क्योंकि आज देश में करोड़ों लोग भूखे सो जाते हैं, करोड़ों बेरोजगार घूम रहे है, जाति - धर्मं, भाषा - संप्रदाय  आदि के नाम पर कलुषित विचारधारा को जन्म देकर कुछ मुठ्ठी भर लोग भारतीय समाज और जनमानस को  जहनी गुलामी , राजनीतिक गुलामीआर्थिक गुलामी, धार्मिक गुलामी, सामाजिक गुलामी, सांस्कृतिक गुलामी और आध्यात्मिक गुलामी में जकड कर रख दिया है .
हम एक संप्रभु देश हैं और अन्तर- राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्र है; पर क्या अपने ही देश में राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और वैयक्तिक स्तर पर आजाद हैं? आज जिधर देखो हर तरफ बंदिशें हैं; गुलामी है - जहनी गुलामी , राजनीतिक गुलामीआर्थिक गुलामी, धार्मिक गुलामी, सामाजिक गुलामी, सांस्कृतिक गुलामी, आध्यात्मिक गुलामी और ना जाने क्या - क्या  
तुम भारत के नौनिहाल हो. आने वाले कल हो. भारत के भाग्य और भविष्य हो. तुम्हें इसे समझना और समझाना है . क्यों हमारे नेता हमारे देश के पैसों को काले धन के रूप में विदेशों में जमा कर रहे हैं और उनका विरोध करने वालों के जान के प्यासे हो जाते हैं? क्यों वो काले धन जो देश की संपत्ति है को देश में नहीं लाना चाहते हैं? क्यों लोकपाल और लोकायुक्त जैसे संवैधानिक पदों का विरोध करते हैं? क्यों प्रभावशाली लोकपाल बिल को सिर्फ एक नाम का बिल बनाकर लाना चाहते हैं ? क्यों बाबा और अन्ना को देश जागरूक करने पर धमकी मिलती है? क्यों अनसन और शांतिपूर्ण सत्याग्रह करने वालों को उसकी इजाजत नहीं मिलती है ? क्या हम स्वतंत्र देश के राजैतिक गुलाम बन गए हैं ? तुम्हें, और केवल तुम्हें,  इन प्रश्नों के हल ढूँढने हैं और देश को ऐसी गुलामी से आजादी दिलानी है. एक प्रजाप्रिय एवं जनप्रिय लोकतान्त्रिक पद्धति को संवैधानिक तरीके से स्थापित करना है.
प्यारे बच्चों, आज हम झाँसी की रानी को नमन करें लेकिन ये अहद करें की कोख में पल रहे रानी का दमन नहीं करेंगे. उस अजन्मी बालिका को भी जन्म लेने की आजादी देंगे. नेताजी , भगत सिंह, खुदीराम आदि को याद करें और करोड़ों अनपढ़ को शिक्षा की रौशनी देकर अशिक्षा का शमन करें. गाँधी , नेहरु और पटेल आदि को अपनी श्रधांजलि दें लेकिन उनके सपनों के भारत निर्माण के लिए अपने  कर्तव्य को  सही राह दें.
सही मायनों में आजादी का आनंद तब आएगा जब देश में होगी भूख और भुखमरी से आजादी, कन्या और भ्रूण हत्या से आजादी, बेगारी और बेरोजगारी से आजादी, अशिक्षा और अज्ञानता से आजादी, बे-लगाम महंगाई से आजादी, गरीबी और बीमारी से आजादी, बाढ़ और सूखे की तबाही से आजादी, टूटी सडकें और गाँव के अंधेरों से आजादी, भ्रष्ट और भ्रष्टाचार से आजादी, जाति और भाषागत विद्वेष से आजादी, धर्मं और संप्रदाय के द्वेष से आजादी...आजादी… सही मायनों में आजादी...
आज सारे भारतवासी स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं. लेकिन, कल से फिर सब कुछ वैसा ही रहेगा. नेतालोग भाषण देंगे. देशप्रेम कि बातें करेंगे और देश के लोग तालियाँ बजायेंगे. बड़े - बड़े कसमें - वादे होंगे और उसको पूरा करने में बड़े - बड़े घोटाले होंगे. घोटालों कि जांच होगी और कानूनी फांस होगी. लेकिन, जनता बेचारी... वह तो केवल निराश होगी. इसलिए आज जरूरत है- एक वैचारिक क्रांति की...देशप्रेम के जज्बे की... देश के लिए कुछ कर गुजरने की ...केवल आज के दिन उनको याद करके कल से भूल जाना स्वतंत्रता दिवस मनाना नहीं होता... सच ही कहा गया है...शहीदों कि चितायों पे लगेंगे हर बरस मेले ; वतन पे मरने वालों का यही बांकी निशां होगा...
भारत माता के सपूतों, आज फिर से हमारे देश को इन सभी प्रकार के गुलामी से आजादी की दरकार है. आओ, हम यह प्रण लें कि अपने देश को इन सभी गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने में अपना सहयोग देकर देश के अमर शहीदों को सच्ची श्रधांजलि दें. हमारे पूर्वजों ने अपनी कुर्बानी देकर हमें यह आजादी का तोहफा दिया है. इसकी समग्र सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है. आज हम यहाँ उनके शब्दों को दुहराते हैं...हम लाये हैं तूफान से कश्ती निकाल कर; इस देश को रखना मेरे बच्चों संभालकर... इस देश को रखना मेरे बच्चों संभालकर...  सारे देशवासियों को पुनः स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं ...बन्दे मातरम...जय हिंद.