Thursday 26 January 2012

इस गणतंत्र को गणतंत्र ही रहने दो

इस गणतंत्र को गणतंत्र ही रहने दो
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इस गणतंत्र को गणतंत्र ही रहने दो
प्रजातंत्र को प्रजातंत्र ही रहने दो
जनतंत्र को जनतंत्र ही रहने दो

क्यों तुले हो इसको भ्रष्टतंत्र बनाने पर ?
क्यों तुले हो इसको मिटाने पर ?
क्यों तुले हो इसको ठिकाने लगाने पर ?

इस गणतंत्र को गणतंत्र ही रहने दो
प्रजातंत्र को प्रजातंत्र ही रहने दो
जनतंत्र को जनतंत्र ही रहने दो

यह प्यारी जनता कब बेचारी हुई
कब भूख और प्यास कि मारी हुई
कब ये बेघर और इनको बीमारी हुई

इनका ना तुम्हें कोई ख्याल है
ये मरें और जियें तुम्हें कोई मलाल है ?
यह घुट -घुट के जिये और तुम्हें जलाल है

इसकी कमाई तुम खा जाते हो
इसके पेंशन तुम पा जाते हो
इसके बदले तुम आ जाते हो

कभी इसके बारे में भी तो सोचो
बस अब और इसको मत नोचो
कभी इनके आंसू भी तो पोछो

याद रख एक दिन ये जाग जायेंगे
इसके शोषक बहुत पछतायेंगे
तब सारे भेद मिट जायेंगे

खेल ना खेलो जाति - धर्म का
धमकी मत दो अपने वर्ण का
दामन थामो अब तुम शर्म का

भाषाओँ की दीवार तोड़कर
राग - द्वेष का वार छोड़कर
स्वार्थ पंथ से मुख मोड़कर

समता की अब अलख जगाएं
देश प्रेम का दिया जलाएं
तू-तू मैं -मैं का भेद मिटायें

प्रगति के पथ पर है देश को लाना
मुख्यधारा में है सबको अपनाना
साकार होगा अब सपना अपना

जाग उठी अब जनता सारी
आतंक, भ्रष्टाचार, भूख - बीमारी
हमने कर ली है सम - न्याय की तैयारी

अब तुम्हारा भ्रष्टतंत्र नहीं फलेगा
अब अराजकता और नहीं फैलेगा
अब तुम्हारी मनमानी नहीं चलेगा

अपना गणतंत्र गणतंत्र ही रहेगा
प्रजातंत्र अब प्रजातंत्र ही रहेगा
जनतंत्र अब जनतंत्र ही रहेगा

जय हिंद !

कुमार ठाकुर
२६ जनवरी २०१२
© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।