Monday 27 February 2012

शिकायत क्यों करे कोई


शिकायत क्यों करे कोई
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अदू  के हो लिए हो तुम तो शिकायत क्यों करे कोई
अब तेरी सोख ऐ महफ़िल पे इनायत क्यों करे कोई

अब्र - ऐ - इश्क  का अंजाम गम - ऐ - दरिया है जालिम
तो, तुझ नाचीज से इश्क की रिवायत अब क्यों करे कोई

कसमे - वादों को तोड़,  अपने दीवाने को बेजार किया
अब तेरी जर्फ़ - ऐ - वफादारी पे यकीं क्यों करे कोई

जब तुमने बसा ही ली हैअपनी एक नयी दुनियां
तो अपनी ही दुनिया से भला रवानगी क्यों करे कोई

जब वफाई की मीनार पे बेवफा निकली है सितमगर
तो तेरी बेवफाई पे भला रंज ओ गम क्यों करे कोई…..

कुमार ठाकुर
२७ फरवरी २०१२.
© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।

Saturday 11 February 2012

प्रवृति "आ बैल मुझे मार" की


प्रवृति "आ बैल मुझे मार" की
कुछ लोगों की प्रवृति होती है,  "आ बैल मुझे मार" की;
उन्हें कहाँ है लाज - शर्म  हर पल - पल  के हार – श्रृंगार  की.
ब्यर्थ ही ताना - बाना बुनते रहतेकरते हैं सब बेकार की;
ना खुद को है सुख – चैन, ना है चिंता अपने घर - बार की.
दूसरों को  देख  सके न सुखीउलझन डाले नाना प्रकार की;
निंदक - निष्कृष्ट- निंदनीय बनकर वे बातें करे तकरार की.
फितरत से पाखंडी होतेचैम्पियन सांठ - गांठ-तोड़ - फाड़ की;
उल - जुलूल में व्यस्त हैं रहते, ना कुछ सरोकार रोजगार की.
अर्थहीन संवाद के मालिक कटु आलोचक सरकार की;
उनको कुछ ना फर्क है पड़ता  किसी डांट - फटकार की.
इनको जरा भी समझ नहीं आता कोई भाषा प्यार की;
क्योंकि इनकी तो प्रवृति होती है "आ बैल मुझे मार" की

कुमार ठाकुर
९ जनवरी, २०१२.
०५:१० बजे अपराह्न.
© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।