Friday 15 June 2012

जगमगाती है मेरी रातें...

जगमगाती है मेरी रातें...

बुत, बुत को  कहता काफिर, कैसी है ये बातें;
ऐसी ही सोच में गुजरती थी मेरी हर रातें

रब ने सिखाई  सब इन्सां को ईमान की बातें;
इन्सां ने दिखाई हैवानियत दिन हो या रातें

एक दिन पुकारा उसको, समझा मुझे बातें;
वो बैठा मेरे पास, रोशन कर दी मेरी रातें

वो करते  हैं हमसे हमारे दिल की बातें;
बातों - ही- बातों में कट जाती  है रातें

ना  बदलें करवट, ना पलकें ही झपके;
ना जानें कब - कैसे कट जाती है रातें

ना कोई शिकायत, ना गम  की बातें;
एक रूहानी सफ़र अब लगती है रातें

अब रोज होती है उनसे मुलाकातें;
उनके धुन में गुजर जाती है रातें

तसब्बुर में केवल उनकी ही यादें;
ख्यालों के मेलों से  सजती है रातें

करना मुझसे अब कोई जन्नत की बातें;
नूरे इलाही से अब जगमगाती है मेरी  रातें

कुमार ठाकुर
१५ जून २०१२

© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।

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