Friday 18 January 2013

समाज का रवैया



समाज का रवैया
उनको जब जरूरत होती है आपकी
तो आप उनके लिए दयावान बन जाते हैं
कृपानिधान ही नहीं भगवान बन जाते हैं
वो विनम्रता की मूर्ति बन जाते हैं 
और आपका यशोगान भी गाते हैं
आपका घर मंदिर बन जाता है
और वह सुबह-शाम वहाँ हाजिरी लगाता है
आपका इशारा और इरादा नहीं होता है
लेकिन वह कई भोग और प्रसाद चढ़ाता है
और जिस पल उसे आपका आशीर्वाद मिल जाता है
उसे सफलता का मिठास मिल जाता है
उस पल से ही आप बेगाने हो जाते हैं
वह भलामानुष आपसे अनजाने हो जाते हैं
जब आपको वक्त पड़े तो वह मुंह मोड़ लेते हैं
आप उससे मिलना चाहें वो उस गली को छोड़ देते हैं
उसके मोबाइल की सभी लाईनें व्यस्त हो जाती हैं 
और रिश्ते-नातों से आपके विश्वास का अस्त हो जाता है
आज के समाज का तो बस यही रवैया है
इसलिए कहता हूँ, अपने पर भरोसा रख
कर्मठ और कर्मवीर बन जीवन में आगे बढ़
क्योंकि जीवन का यही गीत-संगीत, कवित और सवैया है...

कुमार ठाकुर
प्राचार्य
के० वि० रंगापहाड़, नागालैंड.
१८.०१.२०१३. 
© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।

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