Saturday 12 May 2012

मंजिल का मिलना जरूरी है....

मंजिल  का मिलना जरूरी है....

मंजिलें  मिल  जाये ये जरूरी नहीं, कोशिशों  का  कारवां  जरूरी है।
कारवां बन  जाये ये  जरूरी  नहीं , आप का  चलना  मगर जरूरी है।

रास्ते के पत्थरों से भेंट तो होगी , उन  पत्थरों से मिलना जरूरी है।
कुछ  और भी राहगीर  मिलेंगे, उनसे रास्ते  को जानना जरूरी है।

मुश्किलें गर होंगी तो क्या हुआ, उनसे मुखातिब होना भी जरूरी है। 
तुमको छाया मिलेगी किसी बरगद का, उसको ढूढना जरूरी है। 

कूआं भी है प्यास  बुझाने को, उस  कूआं तक  पहुंचना  जरूरी है। 
रास्ते की गर्द  बेसब्र करेगी, तुम्हारा सब्र रखना बहुत  जरूरी है। 

थक  के बैठ  भी जाओ  मगर, नयी जोश से  आगे बढ़ना जरूरी है।
खुदा का फैसला तेरे हक  में होगा, तेरा हौसला रखना जरूरी है। 

कुछ  याद रहे या न  रहे कुमार, मंजिल  को याद रखना जरूरी है।
तुम गर अपनी धुन  के पक्के हो, तो मंजिल  का मिलना जरूरी है।  

कुमार ठाकुर 
12 मई,  2012 
    © कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।

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