Wednesday, 2 January 2013

आया वसंत...



आया वसन्त

जब वह मंद-मंद मुसकाती हो
जब पिय की याद सताती हो  
जब मंद-मंद बयार बहे  
जब बागों में बहार रहे  
जब कलियों पे भँवरे मंडराए  
जब मन प्रेम सुधा रस बरसाए
  जब सूरज दिन में इतराये  
जब चाँद रात में शरमाये  
जब फूटे नयी कोपलें और मंज्जर  
जब चुभने लगे विरह- व्यथा की खंजर 
  जब आशाओं के फूल खिले  
जब मन को मन का मीत मिले  
जब दुःख- दर्द का हो जाए अंत 
  तब अरहुल बोले आया वसन्त ...


(मेरी धर्म-पत्नी अरहुल देवी को समर्पित)

कुमार ठाकुर

१८ मई, २०१०.
© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।

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