Friday, 14 December 2012

कुलवंत तुम कुलीन बन



कुलवंत तुम कुलीन बन
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कुलवंत तुम कुलीन बन
 शांत और शालीन बन
राग – द्वेष छोड़ कर,  
काम – क्रोध त्याग दे
लोभ – लालच को छोड़
हिंसक प्रवृति परित्याग दे
तुम मनुष्य हो, सभ्य हो,
सभ्य समाज के प्रतीक
सामाजिक बनके जीना सीखो
बन के रहो ना अब अतीक
नफरत के जज्बे से होगा
केवल तेरा ही नुकसान
प्यार के पौधों को सींचो
तुम इक पल बनकर इंसान
जीवन जश्न बन जाएगा
और तुम बन जाओगे महान
सर्वत्र पूज्यनीय बनकर तुम
होगे प्रसिद्ध दुनिया जहान
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कुमार ठाकुर, प्राचार्य, के० वि० रंगापहाड़ छावनी, दिमापुर, नागालैंड.
२७ नवम्बर, २०१२.
© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।

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