तुम मिले...
जहाँ हमने ढूँढा वहाँ तुम
मिले;
जहाँ हम गए वहाँ तुम मिले.
जमीं पे तुम्हारा ही जलवा नजर
आया;
अर्श पे तुम्हारा ही अक्स
लहराया.
मेरी सोच में तुम्हारा ही
आशियाना;
जहाँ भी जाऊं, सुनु तेरा ही
अफसाना.
बागों में तुम, उसके कलियों
में तुम;
फूलों में तुम, उसके खुशबू
में तुम.
अदाओं में तुम, वफाओं में तुम;
नज्मों में तुम, हर बज्मों
में तुम.
शफाकत में तुम, नजाकत में तुम;
जर्रे – जर्रे कि सदाकत में
तुम.
आशिकी के हर जमानों में तुम;
आशिक के हर अरमानों में तुम.
मेरे तसब्बुर में तुम, मेरे
हर तदवीर में तुम;
दिल- ओ – दिमाग में उपजे सोच
कि हर लकीर में तुम.
जहाँ भी जाऊं अब, मुझको मिले
तुम ही तुम;
अब तो मेरी हस्ती भी है तुम ही तुम...
कुमार ठाकुर
१८ जून २०१२.
© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।
© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।
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