जगमगाती है मेरी रातें...
बुत, बुत को कहता काफिर, कैसी है ये बातें;
ऐसी ही सोच में गुजरती थी मेरी हर रातें।
ऐसी ही सोच में गुजरती थी मेरी हर रातें।
रब ने सिखाई सब इन्सां को ईमान की बातें;
इन्सां ने दिखाई हैवानियत दिन हो या रातें।
इन्सां ने दिखाई हैवानियत दिन हो या रातें।
एक दिन पुकारा उसको, आ समझा मुझे बातें;
वो आ बैठा मेरे पास, रोशन कर दी मेरी रातें।
वो आ बैठा मेरे पास, रोशन कर दी मेरी रातें।
वो करते हैं हमसे हमारे दिल की बातें;
बातों - ही- बातों में कट जाती है रातें।
बातों - ही- बातों में कट जाती है रातें।
ना बदलें करवट, ना पलकें ही झपके;
ना जानें कब - कैसे कट जाती है रातें।
ना कोई शिकायत, ना गम की बातें;
एक रूहानी सफ़र अब लगती है रातें।
अब रोज होती है उनसे मुलाकातें;
उनके धुन में गुजर जाती है रातें।
तसब्बुर में केवल उनकी ही यादें;
ख्यालों के मेलों से सजती है रातें।
करना न मुझसे अब कोई जन्नत की बातें;
नूरे इलाही से अब जगमगाती है मेरी रातें।
नूरे इलाही से अब जगमगाती है मेरी रातें।
कुमार ठाकुर
१५ जून २०१२
© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।
१५ जून २०१२
© कुमार ठाकुर । बिना लिखित अनुमति इन कविताओं का कहीं भी किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।
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